
१९०८ वैकुण्ठ एकादशी, मुक्कोटी एकादशी व्रत का दिन उज्जैन, मध्यप्रदेश, इण्डिया के लिए

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१९०८ वैकुण्ठ एकादशी
वर्ष: | १९०८ वैकुण्ठ एकादशी उपवास का दिन उज्जैन, इण्डिया के लिए |
वैकुण्ठ एकादशी व्रत
१४वाँ
जनवरी १९०८
(मंगलवार)
(मंगलवार)
वैकुण्ठ एकादशी
वैकुण्ठ एकादशी पारण
१५th को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय = ०७:१५ से ०९:२३
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय = ११:३७
एकादशी तिथि प्रारम्भ = १३/जनवरी/१९०८ को ०८:१४ बजे
एकादशी तिथि समाप्त = १४/जनवरी/१९०८ को ०९:४० बजे
एकादशी तिथि समाप्त = १४/जनवरी/१९०८ को ०९:४० बजे
टिप्पणी - २४ घण्टे की घड़ी उज्जैन के स्थानीय समय के साथ और सभी मुहूर्त के समय के लिए डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है)।
१९०८ वैकुण्ठ एकादशी
समय - वैकुण्ठ एकादशी हिन्दु कैलेण्डर में धनुर सौर माह के दौरान पड़ती है। तमिल कैलेण्डर में धनुर माह अथवा धनुर्मास को मार्गाज्ही मास भी कहते हैं। धनुर्मास के दौरान दो एकादशी आती हैं जिसमें से एक शुक्ल पक्ष के दौरान और दूसरी कृष्ण पक्ष के दौरान आती है। जो एकादशी शुक्ल पक्ष के दौरान आती है उसे वैकुण्ठ एकादशी कहते हैं। क्योंकि वैकुण्ठ एकादशी का व्रत सौर मास पर निर्धारित होता है इसीलिए यह कभी मार्गशीर्ष चन्द्र माह में और कभी पौष चन्द्र माह में हो जाती है। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार एक साल में कभी एक, कभी दो और कभी कोई वैकुण्ठ एकादशी नहीं होती है।
लाभ - वैकुण्ठ एकादशी को मुक्कोटी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। एसी मान्यता है कि इस दिन वैकुण्ठ, जो की भगवान विष्णु का निवास स्थान है, का द्वार खुला होता है। जो श्रद्धालु इस दिन एकादशी का व्रत करते हैं उनको स्वर्ग की प्राप्ति होती है और उन्हें जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।
वैकुण्ठ एकादशी का दिन तिरुपति के तिरुमला वेन्कटेशवर मन्दिर और श्रीरंगम के श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर में बहुत ही महत्वपूर्ण है।
मलयालम कैलेण्डर में, जिसका केरल में अनुसरण होता है, वैकुण्ठ एकादशी को स्वर्ग वथिल एकादशी कहते हैं।
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए।
कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है। जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। दुसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं।.
भगवान विष्णु का प्यार और स्नेह के इच्छुक परम भक्तों को दोनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है।
समय - वैकुण्ठ एकादशी हिन्दु कैलेण्डर में धनुर सौर माह के दौरान पड़ती है। तमिल कैलेण्डर में धनुर माह अथवा धनुर्मास को मार्गाज्ही मास भी कहते हैं। धनुर्मास के दौरान दो एकादशी आती हैं जिसमें से एक शुक्ल पक्ष के दौरान और दूसरी कृष्ण पक्ष के दौरान आती है। जो एकादशी शुक्ल पक्ष के दौरान आती है उसे वैकुण्ठ एकादशी कहते हैं। क्योंकि वैकुण्ठ एकादशी का व्रत सौर मास पर निर्धारित होता है इसीलिए यह कभी मार्गशीर्ष चन्द्र माह में और कभी पौष चन्द्र माह में हो जाती है। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार एक साल में कभी एक, कभी दो और कभी कोई वैकुण्ठ एकादशी नहीं होती है।
लाभ - वैकुण्ठ एकादशी को मुक्कोटी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। एसी मान्यता है कि इस दिन वैकुण्ठ, जो की भगवान विष्णु का निवास स्थान है, का द्वार खुला होता है। जो श्रद्धालु इस दिन एकादशी का व्रत करते हैं उनको स्वर्ग की प्राप्ति होती है और उन्हें जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।
वैकुण्ठ एकादशी का दिन तिरुपति के तिरुमला वेन्कटेशवर मन्दिर और श्रीरंगम के श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर में बहुत ही महत्वपूर्ण है।
मलयालम कैलेण्डर में, जिसका केरल में अनुसरण होता है, वैकुण्ठ एकादशी को स्वर्ग वथिल एकादशी कहते हैं।
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए।
कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है। जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। दुसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं।.
भगवान विष्णु का प्यार और स्नेह के इच्छुक परम भक्तों को दोनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है।
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