
२०१५ देवशयनी एकादशी व्रत का दिन उज्जैन, मध्यप्रदेश, इण्डिया के लिए

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२०१५ देवशयनी एकादशी
वर्ष: | २०१५ देवशयनी एकादशी उपवास का दिन उज्जैन, इण्डिया के लिए |
देवशयनी एकादशी व्रत
२७वाँ
जुलाई २०१५
(सोमवार)
(सोमवार)
देवशयनी एकादशी
देवशयनी एकादशी पारण
२८th को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय = ०५:५९ से ०८:३७
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय = २३:०८
एकादशी तिथि प्रारम्भ = २७/जुलाई/२०१५ को ००:२५ बजे
एकादशी तिथि समाप्त = २८/जुलाई/२०१५ को ००:१० बजे
एकादशी तिथि समाप्त = २८/जुलाई/२०१५ को ००:१० बजे
टिप्पणी - २४ घण्टे की घड़ी उज्जैन के स्थानीय समय के साथ और सभी मुहूर्त के समय के लिए डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है)।
२०१५ देवशयनी एकादशी
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु का शयनकाल प्रारम्भ हो जाता है इसीलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते हैं। देवशयनी एकादशी के चार माह के बाद भगवान् विष्णु प्रबोधिनी एकादशी के दिन जागतें हैं।
देवशयनी एकादशी प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा के तुरन्त बाद आती है और अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत जून अथवा जुलाई के महीने में आता है। चतुर्मास जो कि हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार चार महीने का आत्मसंयम काल है, देवशयनी एकादशी से प्रारम्भ हो जाता है।
देवशयनी एकादशी को पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए।
कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है। जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। दुसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं।.
भगवान विष्णु का प्यार और स्नेह के इच्छुक परम भक्तों को दोनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है।
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु का शयनकाल प्रारम्भ हो जाता है इसीलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते हैं। देवशयनी एकादशी के चार माह के बाद भगवान् विष्णु प्रबोधिनी एकादशी के दिन जागतें हैं।
देवशयनी एकादशी प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा के तुरन्त बाद आती है और अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत जून अथवा जुलाई के महीने में आता है। चतुर्मास जो कि हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार चार महीने का आत्मसंयम काल है, देवशयनी एकादशी से प्रारम्भ हो जाता है।
देवशयनी एकादशी को पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए।
कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है। जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। दुसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं।.
भगवान विष्णु का प्यार और स्नेह के इच्छुक परम भक्तों को दोनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है।
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